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🤸दीर्घायु कोई चमत्कार नहीं है — यह रोज़ के चुनावों की कहानी है

 दीर्घायु कोई चमत्कार नहीं है — यह रोज़ के चुनावों की कहानी है हम अक्सर लंबी उम्र को किसी चमत्कार, दवा या रहस्य से जोड़ देते हैं लेकिन सच यह है कि दीर्घायु (Longevity)किसी एक दिन का कमाल नहीं, बल्कि हर दिन निभाई गई छोटी-छोटी आदतों का नतीजा है।स्वास्थ्य अचानक नहीं बनता। यह चुपचाप, धैर्य से हमारे रोज़मर्रा के फैसलों में आकार लेता है। 🚶♂️ चलना: सबसे सस्ती दवा रोज़ चलना केवल व्यायाम नहीं,यह शरीर को यह संदेश देना है कि“मैं अभी ज़िंदा हूँ, सक्रिय हूँ।” नियमित वॉक से रक्त संचार बेहतर होता है,ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है और तनाव अपने आप ढीला पड़ने लगता है। 👉 चलना याद दिलाता है कि स्वास्थ्य के लिए महंगे उपकरण नहीं,नियमितता चाहिए। 🍽️ थोड़ा कम खाना: शरीर को ठीक होने का समय हम जितना ज़्यादा खाते हैं,शरीर उतना ही थकता है। थोड़ा कम खानाकोई त्याग नहीं,बल्कि शरीर के लिए विश्राम है।कम भोजन से कोशिकाओं की मरम्मत होती है, सूजन घटती है और उम्र की रफ्तार धीमी पड़ती है। 👉 पेट भरा हो,पर बोझिल न हो — यही संतुलन है। 🌅 नींद: सबसे शक्तिशाली इलाज अच्छी नींद डॉक्टर से पहले काम करती है। जल्दी सोना और गहरा...

🧆हम ज़्यादा खाते हैं — इसलिए बीमार हैं

 हम ज़्यादा खाते हैं — इसलिए बीमार हैं तीन समय भोजन: स्वास्थ्य सलाह या सभ्यतागत प्रोग्रामिंग? दिन में तीन बार खाना आज इतना सामान्य लगता है कि हम इसे प्राकृतिक नियम समझ बैठे हैं। लेकिन इतिहास, नृविज्ञान (Anthropology) और आधुनिक मेटाबोलिक साइंस एक असहज प्रश्न उठाते हैं— क्या मनुष्य सच में तीन समय भोजन के लिए बना है? या यह एक आधुनिक व्यवस्था की सुविधा है? 1️⃣ मानव इतिहास क्या कहता है? अगर हम 1750 से पहले के मानव समाजों को देखें— तो एक बात लगभग सार्वभौमिक मिलती है: 🔹 नियमित “तीन समय भोजन” का कोई प्रमाण नहीं 🔹 भोजन भूख, श्रम और उपलब्धता पर आधारित था 🔹 उपवास सामान्य जैविक अवस्था थी शिकारी-संग्रहकर्ता (Hunter-Gatherers), प्राचीन भारतीय, यूनानी, रोमन, चीनी सभ्यताएँ— ➡️ वे घड़ी से नहीं, शरीर से खाते थे आधुनिक रिसर्च बताती है कि मानव शरीर Intermittent Fasting और Time-Restricted Eating के लिए जैविक रूप से अनुकूल है। 2️⃣ भारत में भोजन कभी घड़ी से नियंत्रित नहीं था भारत में परंपरागत भोजन व्यवस्था: *सूर्य के अनुसार *ऋतु के अनुसार *श्रम के अनुसार और सबसे महत्वपूर्ण — भूख के अनुसार अधिकांश लोग:...

🥚 आपके नाश्ते की थाली में ज़हर?

 🥚 आपके नाश्ते की थाली में ज़हर? अंडों में मिला “नाइट्रोफ्लोरिन” क्या एक खामोश खतरा है सुबह का समय है। चूल्हे पर चाय चढ़ी है, तवे पर दो अंडे सिक रहे हैं। आपको लगता है—सेहतमंद नाश्ता। लेकिन क्या हो अगर वही अंडे धीरे-धीरे आपके शरीर को बीमार कर रहे हों? हाल के दिनों में खबरें आईं— “अंडों में नाइट्रोफ्लोरिन मिला” और फिर… एक डरावनी खामोशी। कोई साफ़ जवाब नहीं, कोई ठोस चेतावनी नहीं, बस सवाल—क्या हम अनजाने में ज़हर खा रहे हैं? ❓ आखिर क्या है यह “नाइट्रोफ्लोरिन”? सच यह है कि “नाइट्रोफ्लोरिन” कोई आधिकारिक वैज्ञानिक नाम नहीं है। अक्सर यह शब्द नाइट्रोफ्यूरान (Nitrofuran) समूह की प्रतिबंधित एंटीबायोटिक दवाओं के लिए बोला जाता है। Nitrofuran antibiotics ये दवाएं पहले पोल्ट्री फार्मों में इसलिए इस्तेमाल की जाती थीं ताकि: *मुर्गियां जल्दी बड़ी हों *बीमारी न फैले *मुनाफ़ा बढ़े 👉 लेकिन समस्या यह है कि इनका ज़हर अंडों और मांस में रह जाता है। इसीलिए भारत सहित कई देशों में इन पर प्रतिबंध है। ⚠️ अगर अंडों में यह रसायन हो, तो क्या होता है? 1️⃣ कैंसर का धीमा न्योता नाइट्रोफ्यूरान के अवशेष कैंसरकारक माने ...